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सफर - मौत से मौत तक….(ep-7)

नंदू और यमराज दोनो उस घर की तरफ गए जहाँ नंदू की शादी की बात चल रही थी। इस बार नंदू का दिल बैचेन नही था कि लड़की कैसी है, ना ही हाँ बोलने पर खुशी होनी थी और ना ही मना कर देने पर दुख।

अक्सर उम्मीदों के टूटने की वजह हमारी उम्मीदे ही होती है, अब जब कोई उम्मीद ही नही थी नंदू को तो उसके टूटने का भी कोई डर नही था।

इस बार नंदू के पापा और नंदू के साथ उनका बिचौलिया  श्यामलाल भी था….जिसने सारी बाते की हुई थी। लड़का सोने सा खरा था, बस लड़की वालों से इतनी ही बात छिपानी थी कि नंदू रिक्शा चलाता है, लड़की वालों को ये बताना था कि नंदू किसी कंपनी में काम करता है, और कंपनी का नाम भी सोचकर आये थे, 

सारी बाते लड़की के पिताजी से हुई…. लड़के की तारीफें भी की…. वैसे लड़का था तो तारीफ के काबिल ही, उसकी मेहनत और लगन अगर सही जगह इस्तेमाल होती तो वो कुछ भी कर सकता था। लेकिन किस्मत ने उसका साथ नही दिया, और गरीबी भी उसका पीछा नही छोड़ रही थी….लेकिन जब नंदू अपने से भी गरीब लोगों को देखता था जो दो वक्त की रोटी नही जुटा पाते, जो फुटपाथ में सोते थे, जिन्हें पैसो की कमी और रोजगार के अभाव ने भीख मांगने को मजबूर कर दिया था तो वो अपना कॉलर उठाकर ऊपर वाले का शुक्रिया करता था कि भगवान तूने ज्यादा तो नही दिया लेकिन जितना दिया बहुत है….मैं खुश हूं…. जितना मुझे दिया है उतना ही इन लोगो को भी दे दे….मैं तो इन्हें चाहकर भी कुछ नही दे पाता….इनपर भी रहम कर।

दूसरों के लिए दुआ करने वाले इंसान बहुत कम होते है दुनिया मे…. उन्ही चुनिंदा लोगो मे से नंदू भी था।

आज नंदू के बाबूजी और श्यामलाल जी लड़की वालों से कंपनी के नाम पर झूठ बोलकर ब्याह तय कर दिए, लड़की चाय लेकर आई वो भी बहुत खूबसूरत लग रही थी, लेकिन शायद उसे देखकर चंपा की याद ने नंदू को एकटक देखने नही दिया, नंदू ने चाय उठायी और नजरे झुका ली….लड़की ने बाबूजी और होने वाले ससुरजी चिंतामणि जी और उनके साथ आये श्यामलाल जी को चाय दी, फिर अंदर जाने लगी तो श्यामलाल ने कहा- "तुम भी बैठ जाओ बेटी….अंदर चली जाओगी तो लड़का किसे देखकर शादी का फैसला लेगा, वो तो लड़की को देखने आया है, ससुरजी को देखकर थोड़ी करेगा"

ये बात सुनकर शरमाती हुई गौरी भी वही अपनी माँ के पास बैठ गयी।

नंदू ने मन ही मन सोचा- "गौरी! कितना सुंदर नाम है….कितना अच्छा लगेगा जब में शादी के बाद सुबह सुबह आवाज दूँगा…. गौरी……ओ गौरी, माँ के लिए चाय ले आ, बाबूजी की फीकी चाय लाना….और गौरी अंदर से आवाज देगी…- आप नही पियेंगे क्या? आपके लिए भी ले आऊँ? ……नही मुझे देर हो रही है, अभी समय नही है। , फिर गौरी बोलेगी- "पी लीजिये ना थोड़ी सी….अब बना भी दी है मैने।"

उसके बाद गौरी की बनाई चाय पीकर मैं काम पर चला जाऊंगा….

इतना सोच ही रहा था कि श्यामलाल के सवाल ने उसका प्यार से ख्वाब तोड़ दिया जो सवाल गौरी के लिए था।

"बिटिया लड़का कैसा है, पसंद तो है ना?……शादी के लिए तैयार तो हो ना?"

गौरी ने हल्की सी प्यारी सी मुस्कान दी, और शर्माकर सिर झुकाते हुए चोर नजर से नंदू की तरफ देखते हुए सिर को हाँ  में हिलाकर जवाब दिया"

नंदू ने शरमाती हुई गौरी की तरफ देखा, उसकी हाँ सुनी……  नंदू के लिए भी बहुत खुशी की बात थी…. उसने देखा गौरी भी बहुत खुश लग रही थी। उसकी खुशी देखकर नंदू फिर सोचते सोचते ख्यालो में खो गया, उसे कुछ ऐसा छोटा सा सपना आया कि शादी के दूसरे ही दिन गौरी ने वापस मायके जाने की जिद पकड़ ली थी ,और नंदू शर्मिंदा सा अपने रिक्शे के पास खड़ा रहा, और गौरी ने उसे कहा कि आप एक नंबर के झूठे हो, आप रिक्शा चलाते हो और आपने बताया कि आप किसी कंपनी में काम करते हो, ऐसे झूठे आदमी के साथ एक पल भी नही रह सकती, मैं जा रही हूँ ,मुझे जाने दो"
नंदू डरते डरते गौरी को जाने से रोकने के लिए बोला "नही…." 

"लेकिन क्यो….तुम्हे गौरी क्यो पसंद नही है" श्यामलाल ने पूछा।

नंदू का सपना टूटा तो पता चला की श्यामलाल ने उससे सवाल किया कि क्या तुम्हें भी गौरी पसंद है, लेकिन अनजाने में नंदू ने नही बोल दिया था। अपनी बात से पलटते हुए नंदू तुरन्त बोला।
"क्यो नही! पसंद तो मुझे भी बहुत है….लेकिन मैं उनसे एक बार अकेले में कुछ बात करना चाहता हूँ" नंदू ने कहा।

"आजकल तो ये फैशन है बेटा! और एक तरह से अच्छा फैशन है, जो बात माँ बाबूजी के सामने नही कर सकते वो बात अकेले में एक दोस्त की भांति बता दिया जाए तो बादमे परेशानियां नही आती" श्यामलाल ने कहा।

"हाँ हां…… जरूर…… जो भी बात करनी है अंदर जाकर कर लो बेटा" ससुर जी ने कहा।

नंदू और गौरी अंदर कमरे में गए, गौरी बहुत डरी सी थी, पहली बार उसका इंटरव्यू होने वाला था, वो सोच रही थी अगर ज्यादा उल्टे सीधे सवाल पूछे तो शादी से मना कर दूंगी, पता नही क्या पूछेंगे, कही पढ़ाई वढ़ाई पूछ लिया तो फिर क्या करूंगी, बाबूजी ने तो सबको आठवी उत्तीर्ण बोला है, लेकिन मैं तो सातवी में दो बार पढ़कर भी उत्तीर्ण नही हो पाई। अब अगर मैं उत्तीर्ण बोल दी और अंक पत्रिका देखने की जिद कर दी तो मेरा झूठ तो पकड़ा जाएगा।

दूसरी तरफ नंदू ने बहुत सारी हीम्मत एकत्रित की हुई थी ताकि वो उसे ये सच बता सके कि  वो किसी कम्पनी में नही बल्कि खुद का एक रिक्शा चलाता है।

दोनो अंदर पहुंचे और एक चारपाई के अलग अलग कोने में बैठ गए।

"वो मुझे कुछ पूछना था आपसे" नंदू थोड़ा घबराहट भरी आवाज में बोला।

"जी पूछिये" गौरी ने इजाजत देते हुए कहा।

"क्या आप….सच मे शादी करना चाहते है?" नंदू ने सवाल किया।

"आप झूठ में लड़की देखने आए है क्या? अगर आप सच मे शादी के लिए लड़की देखने आए है तो मैं भी सच मे ही शादी के लिये हां बोलूंगी" गौरी थोड़ा और खुलकर बोली।

"मैं आपको कुछ बताना चाहता हूँ अपने बारे में, उसके बाद यदि आप चाहे तो शादी के लिए हां भी बोल सकते है और चाहो तो नही भी, और जो भी बोलना हो आज ही बोलना, ये सोचकर सोचने के लिए समय मत मांगना की इनके सामने सच बोल दिया तो इन्हें बुरा लगेगा" नंदू बहुत शालीनता और आत्मविश्वास के साथ बोला।

"ऐसी क्या बात है जी। आप ऐसा क्यो बोल रहे हो?" गौरी ने कहा।

"क्योकि मेरे बाबूजी झूठ बोलकर मेरी शादी कराना चाहते है, और मैं नही चाहता कि एक झूठ आपकी खुशिया और जिंदगी दोनो बर्बाद कर दे…. मैं भी थोड़ी देर के लिए झूठ में शामिल हो गया था, लेकिन आपका मुस्कराता चेहरा और आपके चेहरे की खुशी देखकर लगा कि जब आपको सच्चाई का पता चलेगा तो फिर दोबारा कभी नही खिल पाएगी वो खुशी वो मुस्कराहट आपके चेहरे पर….मैं आपको खुश देखने और हमेशा खुश रखने की जिम्मेदारी के साथ ले जाना चाहता हूँ, और जो झूठ हमने बोला है अगर उसकी सच्चाई आपके सामने शादी से पहले नही रखी तो आपके साथ धोखा होगा" नंदू ने कहा।

"आप बताइए तो सही ऐसी क्या बात है?"  गौरी ने दिल पूछा, उसका दिल बैठा जा रहा था, वो नही चाहती थी ये रिश्ता टूटे, क्योकि नंदू देखने मे भी सुंदर था और बात करने का सलीका, और बोलने का ढंग भी अच्छा था। शब्दो मे इज्जत और स्नेह था। और एक आकर्षण जो शायद इस उम्र में आकर्षित करता है।

"बाबूजी ने कहा है कि मैं किसी कंपनी में काम करता हूँ, नौकरी करता हूँ, ये झूठ है…. मैं रिक्शा चलाता हूँ और इतना पैसा कमा लेता हूँ कि मेरे अलावा किसी को नौकरी करने की जरूरत नही है, तीन टाइम का खाना पक जाता है, बाबूजी की दवाई आ जाती है, और चार पैसे बच भी जाते है।" नंदू ने सब सच सच बोल दिया।

नंदू के सब बोल जाने के बाद थोड़ी देर खामोशी रही , शायद गौरी कुछ कहने ही वाली थी कि बाहर से आवाज आ गयी - "हुई नही बात क्या……" लक्ष्मी ने पुकारा।

"मैं बाहर चलता हूँ, लेकिन ये बात आपकी और मेरे बीच की है, अगर आपने नही करनी होगी तो कोई बात नही, लेकिन अपने बाबूजी को ये मत बताना कि मैं कंपनी में काम नही करता, क्योकि इससे मेरे बाबूजी की बेइज्जती होगी। कुछ और कारण बोल देना, और अगर शादी करनी होगी तो नई जिंदगी की शुरुआत के लिए आपको शुभकामनाये, फैसला आपका होगा" नंदू ने कहा और बाहर आ गया।

नंदू बहराकर बैठ गया,और पीछे पीछे गौरी भी आई……। गौरी ने सबकी तरफ देखकर हल्की सी मुस्कान बिखेरी और बैठ गयी।

"हो गयी बात….क्या तय किया?" श्यामलाल ने पूछा।

नंदू ने गौरी की तरफ इशारा करते हुए कहा - "इनपर है फैसला……मैं तो राजी हूँ" 

अब सबकी नजर गौरी कि तरफ़ थी

गौरी ने भी सिर हिलाते हुए कहा- "मैं भी राजी हूँ"

नंदू को बिल्कुल भी हां की उम्मीद नही थी, उसे लगा मना कर देगी, लेकिन ये चमत्कार हो गया। अब नंदू की खुशी का ठिकाना नही रहा।

नंदू को खुश देखकर नंदू अंकल भी झूमने लगा

"कंट्रोल अंकल जी……कंट्रोल……इतना क्यो उछल रहे…." यमराज बोला।

"देखा नही उसने हाँ बोल दिया" नंदू अंकल बोले।

"गौरी ने हाँ बोल दी कि खुशी में आप चंपा के नही बोलने में जो दिल टूटा था उसे भूल गए" यमराज ने कहा।

"बेटा एक बात याद रखो जिंदगी में….दुख हमेशा आएंगे, लेकिन खुशिया कभी कभी….जब भी कोई खुशी आये तो सारे दुख भुला दो….वैसे भी अतीत के दुःखों को याद करके
अपने जीवन के आ रही खुशियों को क्यो बर्बाद करें" नंदू ने कहा।

"बात तो ठीक कही आपने, अक्सर अतीत ही दुख का कारण है, क्योकि वर्तमान हमारे हाथ मे है और भविष्य किसी को ज्ञात नही" यमराज ने कहा।

शादी में दहेज लेने से सख्त मना करते हुए नंदू ने भावनाओ में बहकर तुलसी की कहानी भी सुना दी….और कहा कि हमारी भी बहने है, और हम ये सब तकलीफें देख चुके है, मैं नही चाहता कि आपको कोई तकलीफ हो, शादी से पहले में गौरी के जरूरत के सारे सामान जोड़कर रख लूँगा जो हमारी भी जरूरत है, उसके बाद ही शादी करेंगे।
  नंदू की बात से पूरी तरह सहमत चिंतामणि मन ही मन सोचने लगा - "दो लड़कियों की शादी में इतना समान जोड़ा अब मेरी तीसरी लड़की की शादी हो रही , इसके लिए भी समान जोड़ना है"
कहने के दो मतलब हो  सकते है-
सकारात्मक सोचे तो- "गौरी भी हमारी लड़की जैसी है,जब नंदू मेहनत करके अपने बहन के लिए सामान जोड़ सकता है तो अपनी बीवी और खुद के लिए क्यो नही।
और यदि नकारात्मक सोचा जाए तो- "अगर नंदू की शादी में भी हमने ही समान जोड़ना था तो नंदू भी लड़की ही हुआ"
खैर हमारा फर्ज बनता है हम हमेशा सकारात्मक सोचना…. और चिंतामणि ने भी कभी गौरी और अपनी बेटियों में कोई फर्क नही किया, और ढलती उम्र में बहु की हाँ में हां मिलाते रहना भी खुद की सेवा कराने के लिए जरूरी है।

नंदू की मेहनत बढ़ती गयी, आखिर उसने समान जो जोड़ना था, सिर्फ मेहनत ही नही बढ़ी, बल्कि कंजूसी भी बढ़ा दी थी थोड़ी….
नंदू का कहना था कि -
"जो व्यक्ति अपनी भूख से दो रोटी कम खाता है वो अमीर है और जो भूख को मिटाकर भी एक रोटी और खा लेता है वो गरीब…. अक्सर गरीब पेट भरने की सोचता है और जी भरके सोने की,मेहनत करता है तो बस उतनी की उसकी जरूरत पूरी हो जाये, और एक अमीर को नींद नही आती और वो तिजोरी भरने की सोचता है….यही कारण है कि गरीब गरीब रह जाता है और अमीर की अमीरी बढ़ती जाती है। कभी कभी कम खाकर, बिना आराम किये दिन रात मेहनत भी करनी पड़ती ताकि भविष्य में भरपेट खाना मिले और आने वाली पीढ़ी को गरीबी नजर ना आये"
ये नंदू का कहना था किसी महान पहुंचे हुए आदमी का नही, ये कितना सही है कितना गलत, ये तो सब अपने विवेक से बता सकते है।

कहानी जारी है

कौन कौन नंदू की बात से सहमत है….बताना जरूर………


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2 Comments

रतन कुमार

19-Sep-2021 04:31 PM

बहुत ही बढ़िया कहानी है

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Miss Lipsa

06-Sep-2021 03:28 PM

Aree wahhhh

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